प्रेगनेंसी एक महिला की ज़िंदगी का सबसे सुंदर लेकिन चुनौती भरा समय होता है। इस समय मां को अपनी सेहत के साथ-साथ गर्भ में पल रहे बच्चे का भी पूरा ध्यान रखना पड़ता है। आजकल खासकर शहरों में गर्भधारण और उससे जुड़ी परेशानियां तेजी से बढ़ रही हैं।
डॉ. मोलश्री गुप्ता, जो कि सीके बिड़ला अस्पताल में सीनियर फीटल मेडिसिन एक्सपर्ट हैं, बताती हैं कि उन्हें हर दिन जटिल यानी कॉम्प्लिकेटेड प्रेगनेंसी के मामले देखने को मिलते हैं। कभी मां की कोई बीमारी बच्चे की ग्रोथ में रुकावट बनती है तो कभी बच्चे में कोई जेनेटिक यानी जन्मजात बीमारी आ जाती है, जिससे उसकी हेल्दी ग्रोथ नहीं हो पाती।
हाल ही में एक मुश्किल केस सामने आया
डॉ. मोलश्री एक खास केस के बारे में बताती हैं जिसमें 29 साल की महिला IVF से जुड़वा बच्चों की मां बनी। टेस्ट में पता चला कि उनमें से एक बच्चा डाउन सिंड्रोम जैसी गंभीर बीमारी से ग्रसित है। परिवार उस बच्चे का गर्भपात (अबॉर्शन) करवाना चाहता था, लेकिन दिक्कत ये थी कि दोनों बच्चे एक ही थैली (एम्नियोटिक सैक) में थे। ऐसे में एक बच्चे का अबॉर्शन करने से दूसरे बच्चे को भी नुकसान हो सकता था।
कैसे किया गया इलाज?
आमतौर पर ऐसे मामलों में लेजर थेरेपी की मदद ली जाती है। लेकिन इस बार डॉ. मोलश्री और उनकी टीम ने एक नई तकनीक का इस्तेमाल किया जिसका नाम है माइक्रोवेव एब्लेशन। इस तकनीक में उन्होंने बीमार बच्चे की नाल (प्लेसेंटा से जुड़ी नस) को ब्लॉक कर दिया ताकि वह बच्चा खुद ही खत्म हो जाए और दूसरे बच्चे को कोई नुकसान न हो।
सिर्फ 1 मिनट में हुआ पूरा इलाज
डॉ. मोलश्री के क्लिनिक वात्सल्य सेंटर फॉर फीटल मेडिसिन में यह प्रक्रिया की गई। सिर्फ 1 मिनट में माइक्रोवेव तकनीक से बीमार बच्चे की नाल ब्लॉक कर दी गई और दूसरा बच्चा पूरी तरह सुरक्षित रहा। मां और स्वस्थ बच्चा अब पूरी तरह ठीक हैं और डॉक्टर की निगरानी में हैं।
डॉ. मोलश्री कहती हैं कि माइक्रोवेव एब्लेशन तकनीक लेजर से सस्ती भी है और ज्यादा सुरक्षित भी।
क्या होती है फीटल मेडिसिन?
फीटल मेडिसिन का मतलब है – जब गर्भ में ही बच्चे की सेहत की जांच और इलाज किया जाता है। अल्ट्रासाउंड और जेनेटिक टेस्ट की मदद से डॉक्टर्स ये पता लगा सकते हैं कि बच्चे का दिमाग, शरीर और अंग सही से विकसित हो रहे हैं या नहीं। अगर कोई दिक्कत मिलती है, तो उसका इलाज गर्भ में ही शुरू किया जा सकता है।
इसके फायदे
- प्रेगनेंसी में होने वाली मुश्किलों को कम किया जा सकता है
- डाउन सिंड्रोम जैसी गंभीर बीमारियों का पता समय पर चलता है
- जरूरत पड़ने पर बच्चे का इलाज पेट में ही किया जा सकता है
आजकल लोग फीटल मेडिसिन के बारे में जागरूक हो रहे हैं। मां-बाप अब बच्चे के जन्म से पहले ही डॉक्टर्स से जांच करवा रहे हैं ताकि शिशु की सेहत से जुड़ी किसी भी समस्या का जल्दी पता चल सके और उसका सही इलाज समय पर हो सके।
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